तुम चले गये मन व्यथित हुआ
स्मृत्तियो के कोमल मन पर
चेतनता सजीव बन आई थी
जन्मो का चिर सन्देश लिये
पग ध्वनि सुनती मै आई थी
पर भूल चले उस विभुताको
आमन्त्रण भी सब लुटा हुआ
अधरो मे प्यास जगी थी कल
आलिंगन आह अधीर नयन
अलको मे मलय सुगन्धित मन
सागर सा क्यो मंन्थित जीवन
जागा जब अरूण प्राच्य कोमल
नयनो से छल छल गिरा हआ
सहचर है ये सारे बसंत
कोमल किसलय ये दल के दल
हंँस हँस कर थकता जब जीवन
गूँज उठता तब सारा ही बचपन
हारती रही मै हर पल तब
ठहरा न कभी सब लुटा हुआ